मऊ जिले का ऐतिहासिक एवं पौराणिक '#देवलास_मेला' इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है और धीरे-धीरे अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है। पिछले दो दिनों से मौसम का बिगड़ा हुआ मिजाज मेला प्रेमियों, श्रद्धालुओं और दुकानदारों के लिए थोड़ी परेशानी लेकर अवश्य आया है। बेमौसम हुई तेज बरसात ने लोगों के उत्साह को थोड़ा भंग जरूर किया है पर 'सूर्य देव' की कृपा की आशा सबको है और सकारात्मक भाव से लोग कीचड़-मिट्टी से गुजरते हुए भी सूर्य मन्दिर और मेले में पहुंच रहे हैं। इससे इस पौराणिक स्थल (देवकली देवलास) व यहाँ स्थित 'सूर्य मंदिर' के प्रति लोगों की आस्था और श्रद्धा एवं 'देवलास मेले' की लोकप्रियता और महत्व का पता चलता है।
विदित हो कि लोक आस्था के महापर्व #छठ के अवसर पर देवर्षि देवल की तपोस्थली '#देवकली_देवलास' स्थित सूर्य मंदिर, जहाँ भगवान सूर्य के बाल स्वरूप ‘बालार्क’ के दर्शन होते हैं, पर प्रति वर्ष छठ पूजा का पर्व अत्यंत हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है एवं इस अवसर पर वहाँ एक भव्य मेला लगता है जो लगभग 10-15 दिनों तक चलता है । ऐसी मान्यता है कि #देवकली_देवलास कभी अयोध्या साम्राज्य का पूर्वी द्वार हुआ करता था तथा इस #सूर्य_मंदिर की आधारशिला भगवान #श्रीराम ने अपने हाथों से रखी थी और बाद में गुप्त कालीन शासक विक्रमादित्य ने यहाँ #सूर्य_मंदिर का निर्माण करवाया था । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ करके पूर्णिमा तक यह स्थान विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहता है । मुख्य आयोजन छठ के दिन होता है जब सायं काल हज़ारों की संख्या में व्रती श्रद्धालु स्त्री-पुरुष सूर्य मंदिर के निकट स्थित सूर्य #सूर्यकुंड पर उपस्थित होकर छठ पूजा करते हैं जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ दिया जाता है तथा अगली सुबह पुन: वहीं उपस्थित होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है। इसके एक दिन पहले अर्थात पंचमी तिथि को यहॉं पर एक और आयोजन की परम्परा है जिसे #बटोर के नाम से जाना जाता है। ‘बटोर’ के दिन सुबह क्षेत्र की औरतें सूर्य मंदिर पर एकत्र होकर हलवा-पूरी बनाती हैं और उसे भगवान सूर्य को चढ़ाती हैं । इस प्रक्रिया को ‘#कराही_चढ़ाना’ कहा जाता है। षष्ठी तिथि अर्थात #छठ के दिन सूर्योदय से पूर्व ‘#नहान’ की भी परम्परा है जिसमें हजारों की संख्या में क्षेत्रवासी एवं दूर-दूर से आए श्रद्धालु सूर्योदय से पूर्व #सूर्यकुंड में स्नान करके सूर्य मंदिर पर भगवान सूर्य के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। इसे ‘#नहान’ के नाम से जाना जाता है । ऐसा माना जाता है कि देश मेँ शरद ऋतु में होने वाले ‘नहानों’ में यह प्रथम ‘नहान’ होता है । कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्य मंदिर पर #देव #दीपावली का भव्य आयोजन किया जाता है जिसके अंतर्गत इक्यावन हजार दीप जलाकर #सूर्य_मंदिर और #सूर्यकुंड को सजाया जाता है। साथ ही इस अवसर पर सांस्कृतिक-बौद्धिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है ।
इस प्रकार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर पूर्णिमा तक देवकली देवलास विविध प्रकार के धार्मिक-संस्कृतिक आयोजनों का केंद्र बना रहता है और सूर्य मंदिर के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा की वजह से इस दौरान इस स्थान पर कई लाख लोगों का आवागमन होता है। इस अवधि के दौरान यहॉं लगने वाला #विशाल_मेला भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सूर्य मंदिर की ही तरह '#देवलास_का_मेला' भी अत्यंत प्राचीन है। यह मेला कितना प्राचीन है इसका कोई दस्तावेजी प्रमाण अभी तक ज्ञात नहीं है । अंग्रेज आई. सी. एस. अधिकारी डी. एल. ड्रेक– ब्रोकमैन द्वारा संपादित व संकलित तथा सन 1911 में प्रकाशित आज़मगढ़ के गजेटियर (ज्ञात हो कि देवलास मऊ जिला बनने से पहले आज़मगढ़ जिले का भाग था ।) के पृष्ट संख्या 65 पर इस मेले का उल्लेख कुछ इस प्रकार मिलता है: “The only other fair which deserves mention is the #Deolas_fair in pargana Muhhamadabad, which is also known as the Lalri Chhath and is held on the sixth of the light half of Kartik. Deolas is famous in the district for its lake and temple of sun ; and at the fair, to which considerable numbers resort from the neighbouring parganas, a thriving business is done by the shopkeepers.” इस प्रकार आज से 114 साल पहले प्रकाशित इस गजेटियर में इस बात का उल्लेख है कि उस समय भी देवलास अपने सूर्य मंदिर, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को लगने वाले मेले और ताल की वजह से प्रसिद्ध था । इस मेले में पड़ोसी परगनाओं से भारी संख्या में लोगों का आगमन होता था और मेले में आए दुकानदारों द्वारा अच्छा-खासा कारोबार किया जाता था ।
वर्तमान में '#देवलास_मेला' के स्वरूप का और विस्तार हुआ है और इस मेले की पूर्वांचल क्षेत्र के एक प्रसिद्ध मेले के रूप में ख्याति है। मेले में आसपास के जिलों से भारी भीड़ जमा होती है। भगवान सूर्य का दर्शन-पूजन करने के साथ-साथ लोग आवश्यकता की वस्तुओं की खरीदारी करते हैं और मेले में उपलब्ध मनोरंजन के विभिन्न साधनों का सपरिवार आनंद उठाते हैं। दुकानदारों द्वारा अच्छा-खासा कारोबार भी किया जाता है। मेले में आस-पास के जिलों के अलावा प्रदेश के अन्य सुदूर जिलों से भी दुकानदार, झूले वाले, सर्कस एवं विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन आते हैं । पशु मेला भी इस मेले का एक अभिन्न अंग है। इस दौरान घुड़दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है जिसमें आसपास के जिलों के अतिरिक्त अन्य राज्यों से भी घोड़े भाग लेते हैं। खेती-किसानी से लेकर ग्रामीण जीवन की आवश्यकता की लगभग सभी वस्तुएं इस मेले में मिल जाती हैं। क्षेत्रवासियों को इस मेले की बहुत प्रतीक्षा रहती है। इस क्षेत्र के वे निवासी जो आजीविका आदि कारणों से शहरों में रहते हैं, उन्हें भी अपने गांव-घर आने के लिए इस मेले का इंतजार रहता है। इस प्रकार ऐसे 'परदेशियों' को आपस में मिलवाने का नेक कार्य भी यह मेला कर दिया करता है।
[लेखक: देव कान्त पाण्डेय, कवि एवं प्रबंधक (राजभाषा), भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, नई दिल्ली, मूल निवासी : देवकली देवलास : एक अद्भुत धार्मिक स्थल । ]



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